वह
जो भरमाया गया
है
उकसाया गया है
आपसे, इनसे या
उनसे
है तो आदमी
पर नहीं है,
नहीं है जानवर
पर है।
सड़क चलते
गोलियों से भूनता
छुरे की धार
को
हड्डियों पर पैनी
करता
खेलता होली तेज़ाब
से
रौंदता भविष्य की
कोख
को
निर्बाध बलात्कार से
फैलाता अव्यवस्था
शासन के गलियारों
में,
अराजकता
शिक्षा के वातायनों
में,
और रक्त
आस्था के आंगनों
में।
हाँ! यह सब
होता
है
होगा ही!
ध्वजा पर सिंहासन
लटका
हो
विधि और विधान
कच्ची
मिट्टी
और बच्चे हों
कुम्हार
दण्डधारी की आँखें
हों
पीठ
में
एड़ी में हो
प्यार
शिक्षा हो गहना
और शिक्षक सुनार
अखबार छिनाल बने
कुबेर बने यार
जनता के हिस्से
में
पुकार ही पुकार।
ऐसे में
ऐसा जो होता
है
है श्रीगणेश ही
सिर्फ निशान का
हाथी
है बारात अभी
बाकी।
अभी से घबरा
गए
आदमी अभी
शक्ल से तो
आदमी
है
वह चीरता है
छुरे
से
नाखून से नहीं
दाँतों के बीच
अपनी ही जात
के
मांस के रेशे
अटके
नहीं
होंठ भी अभी
अपनी ही जात
के
खून
से
रंगे नहीं।
डरिये मत
अभी तो कसर
बाकी
है
बनने में आदमी
के
हैवान
तब तक देखते
रहिए
राह
बेहिचक चढाते रहिए
महत्वाकांक्षा को
परवान।
उसके स्वागत के
लिए
रक्त से, चर्बी
से
धन से, ऐश्वर्य
से
स्वार्थ की काया
संवारते
रहिए।
मुँह बचाते रहिए
उस यथार्थ से
कि आदमी हैवान
बने
तो माई-बाप
भूल
जाता
है
जिसने पाला उसे
भी
खाता
है
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Yes, we will remember, what you have stated above.
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