बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के लिए दंड विधान को कठोर व शीघ्र प्रभावी करने से जन सामान्य में ऐसे जघन्य अपराध में लिप्त होने की प्रवृत्ति पर अवश्य ही भय का अंकुश लगेगा और अपराधी वृत्ति वाले लोगों की संख्या में कुछ कमी आएगी। पर यह समस्या की सतह मात्र है। समस्या को नियंत्रित करने की दिशा में केवल यही काफी नहीं है। उसके लिए तो समस्या की जड तक पहुंचना होगा और वहाँ इलाज के उपाय खोज कर उन्हें ईमानदारी से लागू करना होगा। नारी के अधिकारों का आदर करना पुनः सीखना होगा।
बढते अपराधों की जड में है समाज में व्यापक रूप से बढ रही नैतिक मूल्यों की गिरावट। बलात्कार जैसे क्रूर अपराधों की निरंतर बढती संख्या और चारों ओर फैली उच्छृंखलता इस संस्कारहीनता का साक्ष्य है। नैतिक मूल्यों की इस गिरावट को प्रश्रय मिलता है समाज के हर क्षेत्र में पैर चुकी राजनीतिक सोच का। जहाँ सब्जी किसी दुकान से इसलिए नहीं खरीदी जाती कि उसका मालिक विरोधी पार्टी का है, जहाँ प्रकृतिक रंगों का सहज गुण गौण और राजनैतिक जुडाव महत्त्वपूर्ण बन जाता है और जहाँ शब्दों के मूल अर्थ को छोड उनके दलगत अर्थों को अधिक वज़न दिया जाता है, वहाँ राजनीति कितने प्रभावी ढंग से सामाजिक सोच को बीमार कर चुकी है, समझना कठिन नहीं। ऐसी स्थिति में अपराधी को उसके अपराध की जघन्यता के अनुपात में दंड नहीं मिलता, उसे तो उसकी राजनीतिक कटिबद्धता के आधार पर दंड मिलता है। ऐसी व्यवस्था में अंततः अपराधी को प्रोत्साहन मिलता है, निर्दोष हतोत्साहित हो अपराध की ओर मुडने लगता है और अपराधियों की संख्या बढती जाती है।
क्या इस स्थिति को बदलने के लिए नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा पर तत्काल विशेष ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए? क्या हमें यह चिंता नहीं होनी चाहिए कि हमारी शिक्षा प्रणाली श्रेष्ठतम वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर व प्रबंधक तो बना रही है पर श्रेष्ठ व ईमानदार नागरिक नहीं बना पा रही है\ आख़िर क्यों\
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Severe exemplary punishment, no doubt is essential, but along with it, the moral education needs to be taken up on a big scale for all age groups.
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