Thursday, April 7, 2016

अकाल की प्यास (Thirst of drought)


Thirst of drought
This is for those who hide behind debates, suppress their inner voice and condone their guilt by providing mere lip service to the suffering masses of Latur and other drought and water scarcity ridden areas.

अकाल की प्यास

भुतही इमली के तले
अंधेरी राह चलते
अनजाने भय से
फटे से स्वर में
बस, चिल्लाते ही तो हो,

तुम्हारे भरे पेट को कहीं
वह अकाल की भूख
छू भी जाय
बस, इसी डर से
सहायता का बेसुरा गीत
गाते ही तो हो।

अकाल, नाम भर
तुमने
बस, सुना ही तो है
देखा कहाँ,
और सुन कर ही
तुम्हारे आदर्श का ऐश्वर्य
दूर खडे़ बालू के टीले में
धंसने लगा,

रात की महफिल का
रंगीन निमंत्रण
और सुबह
देर से टूटी
नींद की उबासी का आलम
सूखी हवाओं के
भूरे जाल में
फंसने लगा।

तुमने जानी है
बस वही भूख
जो दोपहर दो बजे लगती है
और वही प्यास
जो रात आठ बजे जगती है,
तुम्हें क्या मालूम
अकाल की प्यास
कितनी दर्द भरी होती है।

मुझसे पूछो
ना, मुझसे भी नहीं
मेरी उस अंगुली से पूछो
जो जीवन के दीये की
लौ पर रखी है
जिसकी चर्बी
चटख कर बूँद हो
बाती में रिसती है,

इस इंतजार में
कि कोई आये
दो बूँद ही सही
पर आशा के तेल से सींच जाये
उस बुझती जलती बाती को।

वह बाती
जलने की आस लिये
बार बार बुझती है,
पूछो, जरा पूछो
उस टिमटिमाते जीवन सी
सूख रही बाती से,
अकाल की प्यास, सचमुच
कितनी प्यासी होती है।
——

मेरे प्रकाशित कविता संकलन से --

मैने तुम्हारी मृत्यु को देखा है
प्रकाशक: सर्जना, शिवबाडी रोड, बीकानेर - 334003.
email : vagdevibooks@gmail.com